इलाहाबाद में हूं और खबरों से कटा हुआ हूं इसलिए अभी थोड़ी देर पहले प्रभाष जी के न रहने की खबर पता चली। निजी मुलाकात का कभी मौका नहीं लगा था। लेकिन, ये खबर पता चली तो, लगा जैसे कुछ शून्य सा हो गया हो हिंदी पत्रकारिता में कौन भरेगा इस शून्य को। अभी कुछ दिन पहले ही तो ये 73 साल का शेर आंदोलनों में दहाड़ रहा था। बड़-बड़ी बहसों को जन्म दे रहा था। एक आंदोलनकारी संपादक शांत हो गया।
हमारे जैसे लोगों के लिए प्रभाष जोशी उम्मीद की ऐसी किरण दिखते थे जिसे देख-सुनकर लगता था कि पत्रकारिता में सबकुछ अच्छा हो ही जाएगा। अखबारों के चुनावों में दलाली के मुद्दे को करीब-करीब आंदोलन की शक्ल इसी शख्स की वजह से मिल गई थी। मुझे नजदीक से उनको सुनने का मौका लगा था कई साल पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघव भवन में। तब भी वो आंदोलन की ही बात कर रहे थे। छात्रों को व्यवस्था, समाज की बुराइयों से लड़ने के लिए तैयार कर रहे थे।
जनसत्ता में नियमित स्तंभ कागद कारे और आंदोलनकारी अखबार जनसत्ता के आंदोलनकारी संपादक के तौर पर प्रभाष जी पत्रकारिता में अमर हो गए हैं। बस मुश्किल ये है कि चश्मा लगाए देश के किसी भी कोने के हर आंदोलनकारी मंच पर पत्रकारों-समाज को सुधारने-बेहतर करने के लिए बेचैन शख्स नहीं दिखेगा। नमन है पत्रकारिता के इस शीर्ष पुरुष को
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
समाचार ने स्तब्ध कर दिया। हिन्दी पत्राकारिता का वे एक युग थे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteyah samachar jaan kar behad dukh hua
ReplyDeletejyotioshkishore.blogspot.com
प्रभाष जोशी मेरे आदर्श हुआ करते थे। जयप्रकाश नारायण भी आदर्श हुआ करते थे। न मैं पत्रकार हूं, न राजनीति से जुड़ा और न समाज सेवी।
ReplyDeleteकालान्तर में ये आदर्श अप्रासंगिक हो गये। पर अपने आप में भी बहुत कुछ अप्रासंगिक हो गया।
पर जैसे अपने आप से और अपने अतीत से मोह है, और गर्व भी, वैसे प्रभाष जी से भी है।
आज काफी उदास महसूस करता हूं।
लगता है कि पीठ का दर्द कुछ बढ़ गया है इस उदासी से।
प्रभाष जोशी जी को हार्दिक श्रध्दांजली । मैं तो उन लोगों मे से हूँ जिन्हें जनसत्ता पसंद है ।
ReplyDeleteप्रभाष जोशी जी से जैसे विचारों के वाहक कभी नहीं जाते। यहीं मानस में बसे रहते हैं। विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteप्रभाष जी को टीवी पर सुनना वकाई, रोमांचित कर देने वाला होता था। उन्हे श्रंद्धाजलि
ReplyDelete