Friday, August 22, 2008

अल्पायु में लगीं लोकतंत्र को बड़ी बीमारियां

अभी हाल में ही प्रतापजी दक्षिण अफ्रीका होकर लौटे। वहां से लौटने के बाद वहां के सामाजिक परिवेश और उसका भारत से शानदार तुलनात्मक विश्लेषण किया। उनके इन लेखों की सीरीज अमर उजाला में छपी। मैं उसे यहां भी पेश कर रहा हूं। दूसरी कड़ी

दक्षिण अफ्रीका का प्रमुख अंगरेजी दैनिक द स्टार सामने रखा है। तारीख है 27 जून 2008। सुबह की चाय के साथ इस दिन के अंक में प्रकाशित चार खबरों पर पर नजर अटक रही है। यह एक संयोग ही था कि एक दिन के अखबार के जरिए हम दक्षिण अफ्रीका के मौजूदा सामाजिक-राजनैतिक हालात की नब्ज तक पहुंच गए। पहली खबर थी कि दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र के पितामह नेल्सन मंडेला 90 वें जन्मदिन की खुशी में लंदन में बहुत बड़ा जलसा होगा। दूसरी खबर में वहां के नेशनल पुलिस कमिश्नर जेकाई सेलेबी को भ्रष्टाचार और अपराधियों से सांठ-गांठ के आरोप में अदालत में पेश होना है। मौजूदा राष्ट्रपति थांबो म्बेकी ने पुलिस कमिश्नर पर लगे आरोपों को गलत कहा है, यह तीसरी खबर है। आखिरी खबर दक्षिण अफ्रीका में मौजूदा हाल की मुश्किलों का सबसे खतरनाक चेहरा है। अफ्रीका नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष जेकब जूमा के समर्थन में कांग्रेस की यूथ लीग की ओर से जज को जान से मारने की दी गई धमकी की खबर है। जूमा पर बलात्कार और भ्रष्टाचार के मुकदमें चल रहे हैं। नेशनल यूथ लीग ने कहा है कि अगर अदालत जेकब के खिलाफ फैसला देती है तो यूथ लीग यह मानेगी कि अदालते भी विरोधी तत्वों से मिल गई है। ऐसे में जज के साथ कोई भी लीग समर्थक किसी भी तरह की वारदात को अंजाम दे सकता है। यहां तक की उनकी हत्या हो सकती है। जेकब अगले साल राष्ट्रपति होने वाले हैं।

दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की 14 बरस की आयु में जो बीमारियां लगनी शुरू हो गई हैं, वो आने वाले दिनों में बड़ी तबाही के निशान भी बना रही हैं। दक्षिण अफ्रीका के हालात पर शोक जताने पर केपटाउन में दुकान चलाने वाले डी. जेगर चार दिन पहले के इसी अखबार की एक खबर का जिक्र करते हैं। जिसमें नेशनल यूथ लीग ने कहा था कि अफ्रीका नेशनल कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता जेकब जूमा के पक्ष में पूरे मन से लग जाएं, विरोध करने वालों को जान से मार दिया जाएगा।

नेल्सन मंडेला ने कैसा दक्षिण अफ्रीका बनाना चाहा और कैसा बन रहा है। मंडेला अपने जीते जी वो सब देख भी रहे हैं। यहीं से सवाल का एक सिरा हमारी पकड़ में आता है कि कैसे हमारे संघर्ष के व्यक्तित्व और उनके विचार लड़ाई खत्म होते ही अप्रासंगिक हो जाते हैं। सन 1947 में भारत को आजाद कराने के बाद कुछ लोगों को महात्मा गांधी देश के लिए गैरजरूरी से आगे बढक़र बाधक लगते हैं। गांधी का कत्ल के पीछे के गढ़े गए तर्क इसी सच के साक्ष्य हैं। दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के राजनैतिक उत्तराधिकारी उनकी इज्जत खूब करते हैं, बस जो वो कहते हैं वो नहीं करते। केपटाउन के कई बाजारों में एक विज्ञापन की होर्डिंज्स नजर आती है, ज्वैलरी के एक ब्रांड के विज्ञापन में कहा गया है कि अगर आप ये खरीदेंगे तो आपको नेल्सन मंडेला की तस्वीर का सिक्का फ्री मेंं दिया जाएगा। स्टेलिनबाथ की मार्केट हो या केप प्वाइंट के आसपास की सजी दुकानें, नेल्सन मंडेला की तस्वीर वाली टी-शर्ट सबसे अधिक डिमांड में रहती हैं। नेल्सन मंडेला बाहर से जाने वाले पर्यटकों के लिए और भाषण में नाम लेने के लिए काम आ रहे है। जैसे हमारे देश के महापुरूषों के लिए आदर सिर्फ तस्वीरों में शेष रह गया है।


दक्षिण अफ्रीका ने गुजरे 14 बरसों में भव्य बाजार भले बना लिए हों, सामाजिक स्तर पर तरक्की की कोशिश भर नजर आती है। कारोबार और खेतों पर गोरे लोगों का कब्जा है। काले लोग तेजी से शहरों में आ रहे हैं। गोरों की मंहगी जीवन शैली के कारण बाजार बहुत मंहगा हो गया है। छोटे बाजार जहां गोरे नहीं जाते, मगर मंहगाई तो पहुंच ही जाती है। देश के हर बड़े शहर के भीतर दस हजार से भी अधिक आबादी के स्लम आपको मिल जाएंगे। सब नए बसाए गए प्रतीत होते हैं। कई जगह सरकार ने स्कूल और अस्पताल भी साथ में बनवा दिए हैं। सरकारी कर्मचारियों के लिए कालोनियां न के बराबर हैं।

दक्षिण अफ्रीका के किसी भी शहर से आप गुजरें। एक भारतीय के तौर पर सबसे अजीब लगता है कि टीनशेड का घर और बगल में लंबी सी कार नजर आए। कार रखना वहां मजबूरी में शामिल है, क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट न के बराबर है। गोरे लोग अपने बच्चे को कुछ दें न दें कार तो देनी ही है। उनके बच्चे काले लोगों के साथ मैक्सी कैब में जा नहीं सकते। रेल यहां न के बराबर है। एक साल में सात बार बढ़ी पेट्रोल की कीमतें इन दिनों 10.40 रेंड प्रति लीटर हो गई हैं। भारतीय मुद्रा के हिसाब से करीब 62 रूपए 40 पैसे लीटर। आवागमन लोगों के बजट का बड़ा हिस्सा खा जाता है।

आम आदमी की मुश्किलों के बीच वहां लगातार बढ़ रहे शरणार्थी और अफ्रीकी देशों के भीतर बढ़ती आपसी वैमनस्यता जीवन और जटिल कर रही है। हम वेस्र्टन प्राविंश की एक फ्ली मार्केट में घूम रहे थे। तभी वहां नजर आए एक हिन्दुस्तानी साथी से हालचाल पूंछते हैं। वो दो दिन पहले मार्केट के पास की एक बस्ती में केन्याई लोगों के साथ काले लोगंो द्वारा सामूहिक मारपीट की घटना के बारे में बताता है। लगातार कई दिनों से जिम्बाबवे में चल रहे राजनैतिक गतिरोध और उससे दक्षिण अफ्रीका में होने वाली मुश्किलों से अखबार रंगे हुए हैं। टीवी न्यूज चैनल एसएबीसी अफ्रीका में आधे घंटे का एक कार्यक्रम दिखाया जाता है कि जिम्बाबवे की सीमा पर दो लाख लोग दक्षिण अफ्रीका में दाखिल होने के लिए अनुमति की अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। सनसिटी से जोहानेसबर्ग एयरपोर्ट जाते समय रास्ते में सफेद पंडाल नजर आते हैं। उन पंडालों पर यूनाइटेड नेशन्स के लोगो छपे होने के कारण उत्सुकता बढ़ती है। पता चलता है कि ये शरणार्थी शिविर हैं। दूसरे देशों से आए लोगों को उनके देश भेजना और यहां सुरक्षित रखने के लिए ये कैंप बनाए गए हैं।


दक्षिण अफ्रीका में दिक्कत यह है कि गोरों को लगता है कि उनके हिस्से से बहुत कुछ चला गया है। काले अभी जिस तरह कि सरकारे चल रही हैं, उसकी विकास गति से बहुत उत्साहित नहीं दिखते। एक नए सिरे से बनते देश की यह स्वाभाविक बेचैनी है। एक अफ्रीकी नौजवान सिएन जाइना जोहान्सबर्ग में मनी एक्सचेंज के एक काउंटर पर काम करते हैं। यह जताने पर कि हम भारत से आए हैं, वे एक बात कहते हैं। जिस तरह आपका देश कई बार कुछ देशों की पाबंदियों को झेलकर भी खड़ा रहा। हम भी वैसा दक्षिण अफ्रीका में पहुत दिन अमरीका और अमीर मुल्कों के अनुदान पर नहीं पलना चाहते। तमाम दिक्कतों के बीच आगे बढ़ रहे दक्षिण अफ्रीका का स्वाभिमानी चेहरा सिएन जाइना, सुनहरे भविष्य के लिए बहुत सारी उम्मीद जगाता है।

2 comments:

  1. प्रताप जी का विवरण पढ कर बहुत कुछ जानने को मिला, खासकर वहाँ होने वाले विकास और उससे उपजे लोगों के द्वन्द्व के बारे में।
    इस प्रस्तुति के लिए आभार।

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  2. आभार इस प्रस्तुति के लिए.

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