टेलीग्राफ
अखबार की ये सवाल-जवाब वाली शानदार तस्वीर वाली खबर नहीं देखी होती, तो इस विषय पर मैं
शायद ही कुछ लिखता। लेकिन, इसके बाद मेरे मन में जो था। वो लिखना जरूरी लगा। प्रधानमंत्री के साथ
तस्वीर होना किसी के लिए भी बड़ी खुशी की वजह हो सकती है। इसलिए #Selfie
लेना कोई गुनाह नहीं है। लेकिन, सेल्फी दौड़ मेरी
दिक्कत की वजह है। पिछले साल की सेल्फी भगदड़ पर भी मेरे यही विचार थे। लेकिन, उसके खारिज होने की
एक वजह ये जायज रही कि मुझे आमंत्रण ही नहीं मिला था। इस बार ससम्मान मैं भी
आमंत्रित था। और सेल्फी दौड़ छोड़िए, सेल्फी भीड़ में भी शामिल नहीं हुआ। हां, तारीफ
करनी चाहिए भारतीय जनता पार्टी के मीडिया विभाग की इतने सलीके वाले दीपावली मंगल
मिलन समारोह को करने के लिए। जिसमें प्रधानमंत्री @narendramodi बीजेपी अध्यक्ष @AmitShah के अलावा ढेर सारे
मंत्री भी पक्षकारों से सहज रूप से मिल रहे थे। थोड़ा बहुत बोलने के बाद
प्रधानमंत्री, अमित
शाह दोनों ही मंच से नीचे उतरकर पत्रकारों के बीच में आ गए। भाजपा के राष्ट्रीय
सचिव और मीडिया प्रभारी श्रीकांत शर्मा @ptshrikant
ने दो बार मंच से अपील की कि प्रधानमंत्री खुद
पत्रकारों के बीच जा रहे हैं। कृपया सभी महानुभाव अपनी जगह बैठे रहें।
प्रधानमंत्री नीचे उतरकर पत्रकारों के पास खुद आ रहे थे। लेकिन, लगातार की जा रही
अपील अनसुनी हो गई। प्रधानमंत्री के नीचे उतरते ही जैसे सारे पत्रकार टूट पड़ने के
लिए इंतजार कर रहे थे। इसलिए टेलीग्राफ अखबार ने निश्चित तौर पर उमर
अब्दुल्ला के सवाल को सवाल बनाकर जवाब सेल्फी लेने के लिए आतुर पत्रकारों के बीच
घिरे मोदी की तस्वीर डालकर पत्रकारिता का शानदार उदाहरण दिया है। मोदी के आने से
पहले सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्री रविशंकर प्रसाद और वेंकैया नायडू @rsprasad @MVenkaiaihNaidu सभी
पत्रकारों से खुद जाकर मिले। मेरी भी अच्छी मुलाकात हुई। दूसरे मंत्री भी घूम
घूमकर पत्रकारों से सहज भाव से मिल रहे थे। सत्तासीन पार्टी मेजबान की भूमिका सहज
भाव से निभा रही थी। सरकार के मंत्री सुलभ थे। इसलिए टेलीग्राफ की हेडलाइन का जवाब
पत्रकारों को ही खोजना है। सरकार या सत्तासीन पार्टी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से
ऐसा कुछ नहीं किया गया। मुझे भी कभी प्रधानमंत्री के साथ निजी मुलाकात का मौका
मिलेगा, तो हो
सकता है कि एक अच्छी सी तस्वीर उनके साथ मैं भी खिंचवाऊं और उसे फेसबुक पर भी
लगाऊं। लेकिन, इस तरह
की सेल्फी दौड़ में न पहले कभी शामिल हुआ था। न इस बार शामिल हुआ। न आगे होऊंगा।
पत्रकार की भूमिका में रहूं या सामान्य भूमिका में। इससे भी फर्क नहीं पड़ेगा।
शानदार भोजन की व्यवस्था थी। और उसका भरपूर आनंद उठाया। हां, जो विद्वजन ये कह रहे
हैं कि पत्रकारों को कड़े सवाल पूछने चाहिए थे। तो उस पर भी मैं इतना ही कहूंगा कि
ये सवाल पूछने के लिए नहीं मंगल मिलन का समरोह था। वही अच्छे से होना चाहिए था।
सेल्फी दौड़ को छोड़ दें, तो वही हुआ भी। आपातकाल में दबाव में और अभी प्रेम में
पत्रकार ही दोहरे हुए हैं। आडवाणी जी की बात याद आ गई।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment