Friday, August 02, 2013

गड्ढा !

अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में बेहतर हुई सड़कों ने देश में सड़क के रास्ते कितना यातायात बढ़ाया इसका कोई ठीक ठाक आंकड़ा मुझे नहीं मिल सका। लेकिन, नेशनल हाईवेज के सफर पर लोगों का बढ़ा भरोसा साफ दिखता है। पहले हाईवेज पर ट्रकों बसों के बीच में इक्का दुक्का ही कारें नजर आतीं थीं। दिखतीं भी थीं तो वो टैक्सी वाली कारें होती थीं। लेकिन, अब ये दृश्य उलट हो चुका हैं। सड़क के रास्ते अपनी कार से रफ्तार वाला सफर सहूलियत के लिहाज से करने का मोह मैं भी छोड़ नहीं पाता हूं। वैसे भी दिल्ली से इलाहाबाद का सफर यमुना एक्सप्रेस वे बनने के बाद और बेहतर हुआ है। इसीलिए इस बार भी मैं इलाहाबाद अपनी कार से ही गया। दिल्ली से इलाहाबाद जाने का सफर बेहद शानदार रहा और सुबह 8.30 पर नोएडा छोड़ा तो शाम 5 बजते-बजते इलाहाबाद पकड़ में आ गया। यही उम्मीद वापसी की भी थी। लेकिन, इस बार धोखा हो गया। और उस पर भी बुरा ये कि मैं सपरिवार था। अच्छा ये था कि छोटे भाई जैसा छोटे भाई का दोस्त साथ था वरना तो हाईवे का सफर बेहद मुश्किल हो जाता।

NH 2 राष्ट्रीय राजमार्ग 2 जो दिल्ली से कोलकाता जाता है। मथुरा, आगरा, इटावा, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस होते हुए। उस राजमार्ग का हाल ये है कि सारे रास्ते में आपको सफर में अहसास ये होता रहता है कि ये स्थानीय मार्ग है या राष्ट्रीय राजमार्ग। कमाल ये है कि करीब एक दशक से ज्यादा तो मुझे ही इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलते हुए और ये समस्याएं जस की तस हैं।
तो, क्या राष्ट्रीय राजमार्ग के रखरखाव की जिम्मेदारी वाले अधिकारी इन चुनौतियों से कभी नहीं गुजरे होंगे जिससे मुझे गुजरना पड़ता है। मैंने ये तस्वीरें राष्ट्रीय राजमार्ग पर कहां ली हैं ये ध्यान नहीं है लेकिन, लगभग पूरे राष्ट्रीय राजमार्ग का यही हाल है। कहीं से भी उल्टे आते वाहन के बावजूद आप दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुए तो सौभाग्यशाली। उल्टी आती गाड़ी बचा ली तो, जानवर बड़ी चुनौती देने के लिए आ जाएंगे। और, राष्ट्रीय राजमार्ग की हर बाजार में सड़क पार करके जाते ये बिजली के तार तो होंगे ही।

लेकिन, इन चुनौतियों से भी बड़ी एक चुनौती है जिसका अहसास इस बार मुझे इलाहाबाद से दिल्ली आते समय हुआ। इटावा बाजार के ठीक पहले करीब 3 किलोमीटर लंबा जाम लगा था। गाड़ी बंद करके अंदाजा लगाना चाहा कि माजरा क्या है तो पता चला कि कोई दुर्घटना हुई जिसके बाद स्थानीय लोगों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर चक्का जाम कर दिया है। करीब एक घंटे तक फंसे रहने के बाद पीएसी आई तो राष्ट्रीय राजमार्ग अपनी बची खुची प्रतिष्ठा वापस पा सका और हमारी स्थिर कार चालायमान हो सकी।  ऐसा नहीं है कि पुलिस नहीं थी। लेकिन, पुलिस स्थानीय लोगों से निपट नहीं पा रही थी। जैसे ही पुलिस की बजाए पीएसी बाजार में पहुंची जाम में फंसे हम लोगों की जान में जान आई। और राष्ट्रीय राजमार्ग को स्थानीय बना देने वाले स्थानीय लोगों का गुस्सा जाने क्यों गायब हो गया और वो भी गायब हो गए।


लेकिन, अभी भी ये देश के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 की सबसे बड़ी चुनौती नहीं है। बार-बार चिंता जताने वाले चिंतित होते रहते हैं कि देश गड्ढे में जा रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर सलीके से हुए इन गड्ढों को देखकर मैं उसे संशोधित करके कहता हूं कि देश बड़ी रफ्तार में गड्ढे में जा रहा है। और, गड्ढे में देश की गाड़ी जाकर PUNCTURE नहीं BURST हो रही है। यही मेरी कार के साथ भी हुआ। इटावा बाजार के जाम से निकलने के बाद इटावा डीपीएस के ठीक सामने करीब 90 की रफ्तार में चल रही कार से दोनों पहिये निकलकर कार के आगे जाते दिखे तो मेरी जान सूख गई। कार मैं रोक चुका था। बुद्धि स्थिर हुई तो समझ में आया कि दोनों पहिये नहीं पहिये के कवर थे। देखा तो आगे वाला टायर BURST हो चुका था। जिस रिम पर ट्यूबलेस टायर चढ़ा था चार में से 2 रिम उस गड्ढे के प्रकोप से सिकुड़ गए थे।

(9 अगस्त को हिंदुस्तान दिल्ली के संपादकीय पृष्ठ पर साइबर संसार कॉलम में जिक्र)




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