tag:blogger.com,1999:blog-38914419.post2647695770476090789..comments2024-03-11T14:40:54.290+05:30Comments on बतंगड़ BATANGAD: मैं पैर छूने के खिलाफ नहीं हूंBatangadhttp://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-11953310797703706222021-04-13T16:52:14.950+05:302021-04-13T16:52:14.950+05:30पैर छूने से कोई लाभ नहीं है। ना बडे के पैर छूने चा...पैर छूने से कोई लाभ नहीं है। ना बडे के पैर छूने चाहिए और ना ही छोटे के, एडीसन एक वैज्ञानिक था उसने अपने जिवनमे कभी पैर भले ना छुए हो लेकिन उन्होने जो संसार की मद की है वो कोई भारत का नागरिक आज वैज्ञानिक नही बन पा रहा, लोग पैर छूने को भी विज्ञान के साथ जोडते है अगर आत्मा एक ही है तो फिर क्यु कोई किसी के पैर छुए ?KSumarahttps://www.blogger.com/profile/02082808132017101146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-40156733519765062112008-08-14T08:46:00.000+05:302008-08-14T08:46:00.000+05:30मुझे लगता है कि पैर छूने के संदर्भ में कई चीजें गड...मुझे लगता है कि पैर छूने के संदर्भ में कई चीजें गड्डमड्ड कर दी गई हैं। अगर किसी के प्रति श्रद्धा है तो पैर छूकर उसे व्यक्त करना सर्वथा उपयुक्त है। इसलिए इसे परंपरा को पूरी तरह से नकारना ठीक नहीं होगा। लेकिन बाद में श्रद्धा तो गौण होती गई और पैर छूने के कई दूसरे आधार बनते गए। और उसमें सबसे अजीबोगरीब है अपने से छोटी बहन का पैर इसलिए छूना क्योंकि वो उच्च कुल की है। इतना ही नहीं बहन के ससुराल के हर छोटे बड़े का भी पैर छूना क्योंकि वो उच्च कुल के हैं। इसमें कुछ लोग नारी को सम्मान देने की भावना देख सकते हैं लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि वही नारी जब अपनी पत्नी या बहू होती है तब तो उसका पैर छूने की कोई कोशिश नहीं होती बल्कि घर या रिश्तेदार सभी के समुचित सम्मान देने (पैर छूकर ही) की जिम्मेदारी बहू की सबसे ज्यादा होती है। इसलिए मुझे तो मूल दिक्कत इस सोच में ही लगती है कि वरपक्ष हमेशा ऊंचे पायदान पर बैठेगा और कन्यापक्ष हमेशा निचले। लड़की के घर वाले, वरपक्ष को हर तरह का सम्मान देंगे लेकिन वरपक्ष को लड़कीवालों की फिक्र करने की जरूरत नहीं है। आखिर ये रिश्तेदारी बराबरी पर क्यों नहीं हो सकती है। और पैर छूने का आधार व्यक्तिगत श्रद्धा ही क्यों ना हो।chandrakanthttps://www.blogger.com/profile/18262373530524414597noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-36882827673379222492008-08-14T03:39:00.000+05:302008-08-14T03:39:00.000+05:30पिछली दोनो कड़ियाँ पढ़ चुके हैं,इस पोस्ट को पढ़ने के ...पिछली दोनो कड़ियाँ पढ़ चुके हैं,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद बस एक ही ख्याल मन मे आता है जो बचपन से सुना फिर स्कूल कॉलेज मे भी सीखा... लौ के घेरे में आने के लिए अगरबती, धूपबत्ती और मोमबत्ती को हल्का सा झुकाना पड़ता है तभी प्रकाश और सुगन्ध फैलती है..मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-42902283334512027882008-08-13T21:18:00.000+05:302008-08-13T21:18:00.000+05:30harsh ji i am totally agree with dineshrai ji. mat...harsh ji i am totally agree with dineshrai ji. matlab pata hona chahiyee ki peer quoin pardne hain.Nitish Rajhttps://www.blogger.com/profile/05813641673802167463noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-63965147135158659022008-08-13T12:55:00.000+05:302008-08-13T12:55:00.000+05:30हर्षवर्धन जी, यदि कन्यादान गलत है तो 'हिन्दू-विवाह...हर्षवर्धन जी, यदि कन्यादान गलत है तो 'हिन्दू-विवाह-संस्कार' पर प्रश्नवाचक-चिह्न लग जाता है क्योंकि विवाह-संस्कार में कन्यादान ही प्रमुख है। अब आप क्या कहेंगे? क्या 'हिन्दू-विवाह-संस्कार' ही गलत है ?दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-61702226553757509452008-08-13T10:52:00.000+05:302008-08-13T10:52:00.000+05:30हर्ष जी , मुझे लगता है पहले बड़ों की परिभाषा देना च...हर्ष जी , मुझे लगता है पहले बड़ों की परिभाषा देना चाहिए था उसके बाद ही पैर छूने न छूने पर चर्चा . बड़ों की श्रेणी में माँ , बुआ, नानी मामी मौसी , चाची, दादी , बहन भाभी भी आती है , अब ये नारी है तो चरण स्पर्श किया जाय .देवता दौडे आ जायेंगे . और बड़ों की श्रेणी में ही दादा , बाप ,भाई ,चाचा , मामा नाना मौसा फूफा को प्रणाम नही करो क्योंकि ये पुरूष है . इनमे अकड़ आ जायेगी ये सामंतवादी हो जायेंगे .इस टाईप की सोच को एक बार और सोचने की जरुरत है .<BR/>सभी शक्ति के सामने झुकते ही है . माँ बाप को अपने अन्दर शक्ति संचार करने वाला तत्व जो न मानता हो वह क्यों झुकेगा उसे झुकना भी नही चाहिए .संजय शर्माhttps://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-91077884371483337222008-08-13T08:04:00.000+05:302008-08-13T08:04:00.000+05:30हमारे यहाँ बड़ों के पैर छूने की परंपरा है, ये नही ...हमारे यहाँ बड़ों के पैर छूने की परंपरा है, ये नही देखा जाता कि कौन छू रहा है बेटा या बेटी।Tarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-23778374629325085362008-08-13T06:59:00.000+05:302008-08-13T06:59:00.000+05:30समय के साथ सब बदल रहा है । शहरों में अब रिश्तेदारि...समय के साथ सब बदल रहा है । शहरों में अब रिश्तेदारियों को कोई समझौता समझ के नहीं निभा रहा । बचपन में शादियों की यादों के साथ ये भी जुडा हुआ है कि कोई एक रिश्तेदार जरा सी बात पर बिदक गये कि खाना नहीं खायेंगे और सब लोग उनको मनाने में लगे हैं । आज अगर खाना खाना है तो खाओ कोई दोबारा नहीं पूछेगा । <BR/><BR/>मेरी नानीजी हमारे घर पर खाना खाती थीं तो उसके पैसे देती थीं हिसाब लगाकर लेकिन ये अब नहीं होता । जब मैं अपनी बडी दीदी (३ वर्ष बडी) की ससुराल गया तो माताजी ने कहा था कि कोई पैसे दे तो न लेना और दीदी की सास को इतने रूपये चलते समय देकर आना । मुझे अटपटा तो लगा पर सोचा कि देखा जायेगा । वापिस चलते समय दीदी की सासू माँ ने कहा कि तुम उम्र में छोटे हो तुम्हारे माता-पिता होते तो बात अलग थी । और उल्टे मुझे ही कपडे और पैसे देकर विदा किया, उनके इस व्यवहार से मन इतना प्रसन्न हुआ कि पूछिये मत, पैसे मिले वो अलग :-)<BR/><BR/>धीरे धीरे मान्यतायें बदलेंगी इसमें कोई सन्देह नहीं है ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-64322575343594422022008-08-13T06:26:00.000+05:302008-08-13T06:26:00.000+05:30सार्थक चिन्तन चल रहा है, अच्छा लगा.सार्थक चिन्तन चल रहा है, अच्छा लगा.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-68324013769242867912008-08-13T06:21:00.000+05:302008-08-13T06:21:00.000+05:30मेरे मामा जी, उच्चकोटि के विद्वान थे। उन से अक्सर ...मेरे मामा जी, उच्चकोटि के विद्वान थे। उन से अक्सर चर्चा होती रहती थी। मैं कभी उन के पैर छूता था, कभी नहीं भी। इस तरह के व्यवहार पर उन्होंने कभी टिप्पणी नहीं की। एक दिन मैंने उन से पूछा ऐसा क्यूँ होता है कि कभी आप के या किसी के भी पैर छूने को मन करता है, और कभी नहीं। मैं अपने मन की बात करता हूँ, कहीं गलत तो नहीं करता। <BR/>उन का कहना है कि पैर छूने की सही वजह पर तुम पहुँच गए बाकी सब दिखावा है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-89323431568044786122008-08-13T05:30:00.000+05:302008-08-13T05:30:00.000+05:30... दूसरे शब्दों में, मैं पैर छूने की प्रथा के सकत...... दूसरे शब्दों में,<B> मैं पैर छूने की प्रथा के सकत ख़िलाफ़ हूँ मगर आदर की जो भी परम्परा अपनाई जाए उसे नारी के प्रति व्यक्त किए जाने का कठोर पक्षधर हूँ.</B>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-80337714729495894552008-08-13T05:27:00.000+05:302008-08-13T05:27:00.000+05:30हर्ष जी मैं दोनों ही बातों पर आपसे असहमत हूँ. १. ब...हर्ष जी मैं दोनों ही बातों पर आपसे असहमत हूँ. <BR/>१. बड़ों के पैर छूने और छोटों के कान मरोड़ने की प्रथा ने हिन्दुस्तान का सत्यानाश किया है क्योंकि इस परम्परा की वजह से नक्कारे लोगों को जाति, पद, आयु, वरिष्ठता आदि के दम पर जबरिया आदर हथियाने की आदत पद जाती है और विद्वता और सक्षमता की कीमत कम हो जाती है. <BR/>२. कन्याओं के पाँव छूने की परम्परा का कारण भी वही है जो बड़ों के पाँव छूने का है - आदर और सम्मान - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते.. के देश में सिर्फ़ यही तो तो एक प्रतीक बच्चा है नारी के सम्मान का - इसको भी ढहा देंगे तो नारी की दुर्दशा में वृद्धि ही होनी है कमी नहीं. <B>और जिस समाज में नारी की दुर्दशा होती है उसके पतन को कोई रोक नहीं सकता है.</B>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38914419.post-72221665771842255032008-08-13T05:17:00.000+05:302008-08-13T05:17:00.000+05:30मुझे लगता है कि पुराने जमाने में बेटियों के महत्व ...मुझे लगता है कि पुराने जमाने में बेटियों के महत्व को बढ़ाने के लिए ही उनके पैर छूने की प्रथा विकसित की गयी होगी।विशेष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/10884185831127403160noreply@blogger.com